नशा करता है विनाश
नशा करता है विनाश
मादक द्रव्यों के उपभोग का व्यसन,
लाता विविध तरह के अनेक ही दुख ।
नशा करता धन-तन-मन का विनाश,
और हर लेता है सारा पारिवारिक सुख।
नशे का पहला प्रयोग करता कोई जन,
ये सिलसिला न रूकता करें कुछ जतन।
एक खुराक लेती अगली स्वाहा होता धन,
कुल के मान-शांति संग नाश होता तन।
व्यसन नशे का भोक्ता को अकर्मण्य देता कर,
न चाहते हुए भी व्यक्ति हो जाता कर्त्तव्यविमुख।
नशा करता धन-तन-मन का विनाश,
और हर लेता है सारा पारिवारिक सुख।
अधपके मन के साथियों का अबोध का दबाव,
झूठी शान-व्यंग्य सोचने न देते कितना है खराब!
कुछ मन की बात कहने न देता संकोची स्वभाव,
विविध कारक करने न देते सही-गलत का चुनाव।
अति विलम्ब हो चुका है होता आने तक सही समझ,
बचता है जीवन में बस दुख-दुख और केवल दुख।
नशा करता धन-तन-मन का विनाश,
और हर लेता है सारा पारिवारिक सुख।
अति उच्च मूल्य दे सुरा के क्रय का देख घमासान,
अमृत हेतु देव-दनुज न हुए होंगे इतने तो परेशान।
अनदेखा करके मृत्यु-चिन्ह खरीदें मौत का सामान,
मात्र एक नहीं भावी पीढ़ियों की अशांति का विधान।
अनेक उदाहरण देख कर बिन लिए हुए कुछ सीख,
नशे के जाल में फंसते सहर्ष सुख त्याग सहते दुख।
नशा करता धन-तन-मन का विनाश,
और हर लेता है सारा पारिवारिक सुख।
विविध सामाजिक व्याधियों के मूल में है सारे ये व्यसन,
नशा जनक समस्याओं का,नाश करता जग का है अमन।
अनपढ़ -गंवार ही नहीं लिप्त इसमें हैं उच्च शिक्षित जन,
ड्रग्स माफिया-आतंकी विनाशते अखिल विश्व का अमन।
सभी युवा जागकर जगाएं जग उनका है विशेष दायित्व,
वे भविष्य के विधाता हैं जग में लाएं समृद्धि-शांति-सुख।
नशा करता धन-तन-मन का विनाश,
और हर लेता है सारा पारिवारिक सुख।