नानियाल
नानियाल
वो दिन ही क्या थे,
जब बीतती थी छुट्टियां नानियाल में,
हर वक़्त रहता था इंतज़ार,
नाना नानी के घर जाने के ख्याल में,
ना होती थी कोई रोक टोक,
जितनी भी करो मस्तियां हर हाल में,
आज मुड़कर देखूं,
खोखला लगता है नानियाल,
नाना ने जो लेली थी पहले ही विदाई,
अब नानी चल पड़ीं बनके उनकी परछाई।
