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Nitu Mathur

Tragedy

4  

Nitu Mathur

Tragedy

नन्हे नयन

नन्हे नयन

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सुन्दर भोली लाल सी रोली थी बाला अति प्यारी

जिसके रोम रोम में बसी थी अद्भुत कला निराली,


माटी की मूरत घड़ने वाली मिट्टी की सखी सहेली

नायाब हुनर था हाथों में नक्काशी जटिल पहेली,


नरम हाथ रचें आकार, मुख मंडल में भरते प्राण

हर अंग बोलता ऐसे अतुलनिय कला देती प्रमाण,


हर रचना अदभुत उसकी ऐसी मनोहर कलाकारी

मुख बोलती हर मूरत जैसे जीवंत थी शिल्पकारी,


सड़क किनारे सजा रखे थे बुत दो जून कमाने को

ना मां बाप ना था साथी उसकी भूख मिटाने को,


नैन देखते राह उसकी जो बिक जाए मूरत कोई

दे जाए खुशी हाथों में उसके मिट जाए कष्ट वहीं,


काश कोई हो कोई जादू भर जाए उसकी भी झोली

नन्हें नयन पा जाएं जीवन, खिल जाए सूरत भोली ।


 


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