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Shashikant Das

Abstract

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Shashikant Das

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नकाबपोशों की दुनिया

नकाबपोशों की दुनिया

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भ्रम के माया में छिपी हुई है ज़िन्दगी, 

चारो तरफ फैला हुआ है अदृस्य सी संजीदगी

खुलेपन को रोक रहा है यहाँ हर कोई, 

मानो सभी के मन मस्तिक अँधेरे में है जा समायी।


कौन झूठा और कौन सच्चा, पहचाना हुआ मुश्किल, 

जरुरत के समय इंतज़ार में सहम जाता है ये दिल

कौनसी वाणी है अच्छी और किसमे है कटूपन, 

इन प्रश्नो के समक्ष बेचैनी सी हो जाती है उत्पन।


सागर की लहरें भी छू के लौटने का करती है वादा, 

परवर्तित समय में छोड़ देते है यहाँ सभी मर्यादा

वक्तव्य की भाषा समझे या मुख की, 

क्या मिलेगा गंतव्य इनमे कभी चरम सुख की ?


सभी के जीवन की रफ़्तार हुयी कुछ ऐसी तेज, 

अपने सामाजिक जिम्मेदारी को गर्त में दिया है सभी ने भेज

मुखोटो में छिप कर व्यतीत कर रहे है अपना अकेलापन, 

अपने मिथ्या भरी गरिमा में भूल गए है खुद का बचपन।


दोस्तों, यहाँ नित नकाब में  छिपाये फिरते है सभी चेहरे, 

न जाने कब कौन लगा जाये, अपने ही जीवन में छल के पहरे।


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