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निशब्द की लोरी

निशब्द की लोरी

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तन्हाइओ के अन्धेरो से लड लड के

क्यु मै खुदको बे-वजह् खतम करु

आज तेरी यादो के दीप ऐसे जलाउ

के तुम ही खुद बनके

रोशनी छा जाओ तो मानु !!


आज मुजको कोइ शब्द भाव बना लो

पंक्तिओ का चमकता मोती बना लो

आन्तर भाव से ऐसे छलक्कर

मुजको अपनी कविता का

छंद बना लो तो मानु !!


बनकर खुशबू लिपट जाओ मेरे बदन से

बांध लू मुठ्ठी तो सिमट जाओ मुठ्ठी मे

सांसे बनकर समां जाओ मुज जीवन में

एक बार आने के बाद फिर क़भी न जाओ तो मानु !!


चलो आज चन्द्र्किरन की डोरी बना लूं

ख्वाबोंके पालने में यादों को सुला दु

और फिर होले होले और चुपके से

निःशब्द की लोरी सुना के सुला जाओ तो मानु !!


आज फिर तुम्हारी याद ऐसी आई

जखमोने भी ली कुछ ऐसी अंगडाई

महक उठ्ठी मेरी "परम" तनहाई

अब तुम "पागल" प्रेमी की तरह आओ तो मानु !!


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