निशब्द हो जाती हूँ
निशब्द हो जाती हूँ
निशब्द हो जाती हूँ मैं
जब आलिगंंन तुम्हरा करती हूँ।
निशब्द हो जाती हूँ मैं
जब स्पर्श तुम्हारा करती हूँ।
निशब्द हो जाती हूँ मैं
जब मीठी बातें तुम्हारी सुनती हूँ।
निशब्द हो जाती हूँ मैं
जब प्यार तुम्हारा पाती हूँ।
निशब्द हो जाती हूँ मैं
जब तुम्हारे बोलों में
जिक्र अपना पाती हूूंँ।
निशब्द हो जाती हूँ मैं
जब दर्द भरी निगहें
तुम्हारी देेखती हूूंँ।
शब्द नहींं है पास मेरे वो
कि प्यार तुम्हारा बयां करुँ।
तुम्हे नहीं है पता कि
दिल तुम्हारा है
एहसान मंद हमेशा।
इस प्रेम का कर्ज मैं
चुकाऊँ किस तरह।
जो कि निष्काम है
निष्पक्ष है और निर्दोष है।
बस इसलिए तो मैं
आज निशब्द हूँ ......।।

