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Gurjar Vikram Singh , Gurjar Pratihar

Drama

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Gurjar Vikram Singh , Gurjar Pratihar

Drama

शंका

शंका

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शंका एक ज्वलंत आग है

ये तेज तलवार की धार है।

कभी समा जाए मन में अगर

तो होती बस तकरार है।


दिए हैं ऊजाड इसने

लाखोंं घर अब तक।

हो गये बर्बााद घरौंंदे बहुत मगर

यह बैरन अब मरती भी तो नहींं।


शंका के चक्कर में

ना पड़ना ए दोस्त मेरे।

एक तो दोस्ती के रंग

दूसरा संगिनी के संग।


ना होना कभी शंकित

इन दोनों पर भुलकर मगर।

नहींं तो पछताएगा बहुत

ये जान ले ए राही हमसफर।


कद्र करेगा हर बंधन की तू अगर

और निभाएगाा हर वचन को।

शंका से रहेगा जो दुुुर अगर

तो रहेगा सुुखी और संपन्न हरदम।


ना होगी कोई उलझन

ना होगा कोई द्वैष तुझ पर।।


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