निर्भया
निर्भया
डर लगता है थोडा थोडा, डर लगता है सपनों से ,
आँखे इतना देख चुकी हैं, डर लगता है अपनों से।
चीर के भीतर चीर के जातीं, डर लगता है नज़रों से,
डर लगता है अम्मा उनकी आँखों से, उन अधरों से।
डर लगता है खाली बस पर झट से अब चढ़ जाने से,
डर लगता अखबारों की कोई सुर्खी बन जाने से।
सारी दुनिया घूम भी आऊं, डर लगता है गलियों से,
काँटों के बिस्तर पर अम्मा डर लगता है कलियों से।
डर लगता है जीने से माँ, डर लगता है मरने से,
इतना डर लगता है अम्मा, डर लगता है डरने से।
मन करता है मेरा भी, विश्वास करूं, मैं प्यार करूं,
मैं समेट लूं मन के भावों को, खुद को फिर से तैयार करूं।
बुत सी मैं तब से बैठी हूँ, मन करता है अब जी जाऊं,
शमशान सी काली रातों में अब बैठूं और श्रृंगार करूं।
फिर खडग उठा मैं दुर्गा बन, सब पापों का संहार करूं,
अब जी लूं मैं अब जी लूं मैं, इस मौत का दरिया पार करूं।
माँ, जीत सकूंगी उनसे मैं ? मैं काली हूँ ? मैं दुर्गा हूँ ?
या अब भी बैठूं धीर धरे और कृष्ण का इंतज़ार करूं ?