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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

निकला ना करो यूं घर से बेनकाब

निकला ना करो यूं घर से बेनकाब

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निकला ना करो यूं घर से बेनकाब 

आवारा बादल घूमते हैं यहां बेहिसाब 

बंदा हाजिर है साथ चलने को जनाब

मेरी जाने जनाना , जमाना खराब है 


एक तो हुस्न उस पर अदाएं लाजवाब

हो रही है मौसम की भी नीयत खराब 

हवाओं में घुल रही है मस्ती की शराब

जिद ना करो देखो ना जमाना खराब है


कोई शोख गुल छेड़ देगा ये हसीन जुल्फें

कोई गुस्ताख़ भंवरा रोक लेगा तुम्हारी राहें

कोई बेचैन परिंदा थाम लेगा ये गोरी बांहें 

कोई चलेगा ना बहाना जमाना खराब है 


आगोश में भरने को तूफां मचल रहा है 

कदम चूमने को सागर भी लहरा रहा है 

लाली चुराने बशर्म गुलाब भी आ रहा है

मुश्किल है खुद को बचाना जमाना खराब है 


हम तो खैरख्वाह हैं साथ ले लीजिए

इस दुश्मन जमाने से बैर ना लीजिए 

मान भी जाओ, अब जिद ना कीजिए

सुनो ना दिल का तराना जमाना खराब है।



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