निकाले दिल से अभिमान
निकाले दिल से अभिमान
सबको समझे समान,
किसी का ना करे अपमान,
रहो वैसी जैसे,
तलवार के ऊपर रहती है म्यान।
कोई छोटा बड़ा नही यहां,
सब जीवों में है एक ही प्राण,
ना पहुंचे ठेस किसी को,
अमूल्य है सबकी जान।
धन, बल, रूप सब नश्वर है ,
अमर केवल ईश्वर है,
चलो संग दिल से करे अरदास,
सबके तन में है रब का वास।
खाली हाथ आया है, खाली हाथ जाना है,
मृत्यु अटल सत्य है, यह सबने माना है,,
दिल में इतनी नफरत क्यों है,
फिर अपनो से अपने ही बेगाना है।
मानवता से ऊपर हो धन, तो अभिमान,
संग क्या लाया है, जिस पर है गुमान,
दर्प, घमंड, गुरूर, अहम, मद, ऐठ, अकड़ ये सब है पर्याय,
इन सब को त्याग दिल से बनो तुम इंसान।
