नील गजल
नील गजल
क्या हुआ जो हमें इज्जत मिलती नहीं,
चाह कर भी किसी से मुहब्बत मिलती नहीं,
आज हो गये शंहशाह हम उनके गद्दी के,
जाने क्यों आज उन्हें शिकायत मिलती नहीं,
करके व्यापार हम भी आजमा लिए खूब,
देखा मेहनत स्वरूप लागत मिलती नहीं,
हो गये सब अमीर बस हम गरीब रह गए,
सब कहते सफलता बिन मेहनत मिलती नहीं,
दिया है प्रभु का तो खाता है 'नील' कमा कर,
सभी की एक जैसी हालत मिलती नहीं।