नई कविता--- कैसे बनती है
नई कविता--- कैसे बनती है
दिल की गहरी खाई में,
जब खयालों के वसवसे उठते हैं,
भावनाओं की तेज आंधियों में फिर,
मन दूर तक उड़ा जाता है,
दिमाग के देगचे में---
फिर विचार खदकने लगते हैं---
लफ्जों में उबाल आ जाता है,--
और
नए-नए बिम्ब वाष्पित हो कर
कल्पनाओं के बादल बन जाते हैं---
यादों का कोहरा जम जम कर---
फिर पीर घनेरी देता है---
बिछड़े हुए मीत सभी---
बिजली के जैसे चमकते हैं----
सारे मानस पर----
यादों के घनघोर जलद जब छाते हैं----
टकराती है यादें--- आपस में--- तो---
आंखों से रिमझिम होती है,
इन रिमझिम रिमझिम बूंदों से ही
एक नई कविता बनती है।