नेताजी की मुसीबत
नेताजी की मुसीबत


जैसे जैसे नजदीक आ रहे थे चुनाव
नेता जी को चढ़ रहा था सौ डिग्री बुखार
गरीब की बस्ती में वो कैसे पैदल जाएंगे
उनके नरम मुलायम पैर धूप में झुलस जाएंगे
गंदा पानी और नमक रोटी का स्वाद
मुंह का जायका बिगाड़ जाएंगे
चुनाव की जिम्मेदारी थी और
वक्त की पहरेदारी थी
तब एक भक्त पास में आया
नेताजी का साहस बढ़ाया
एक ही दिन की है यह बात
आधा दिन है और आधी रात
गरीब भी कर रहा होगा तैयारी
बढ़ा रहा होगा अपनी उधारी
नई चादर मुलायम बिछौना
टूटी ख
टिया पर बिछाएगा
ले उधार छप्पन पकवान
आपके लिए पकवाएगा
साफ पानी की एक बोतल
होगी आपके सिरहाने पर
अपने मन के दुखड़े रो कर
गरीब सो जाएगा जमीन पर
मीडिया रहेगी इर्द गिर्द आपके
चर्चे होगे हर जगह ढंका बजेगा
राजनीति में एक नया युग
आपके चेहरे पर दमकेगा
नेताजी के चेहरे पर आई मुस्कान
उन्होंने भक्त को दिया यह ज्ञान
समझो कुछ अपनी जिम्मेदारी
करो गरीबी का गुणगान
गरीबी के अस्तित्व से ही
बढ़ता है राजनीति में अपना मान!