नदी
नदी
हिमशिलाओं की गोद में,
सोते सोते फिर अचानक,
इक दिन जाग जाती हूँ।
टेढ़े पथरीले रास्तों में
कूद फाँदती शोर मचाती
मैदानों में भाग जाती हूँ।
जल जीवन है, जल आधार
तुम भी ये करते स्वीकार
लेकिन तुम्हें कद्र न मेरी
लगी घाट पर गंद की ढेरी
ये अपमान सहन न करती
पिया मिलन को तुरत निकलती
आखिर गहरे सागर में जा गिरती हूँ
खो अस्तित्व अपना
पिया से मिलती हूँ।
