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Brijlala Rohanअन्वेषी

Inspirational Others

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Brijlala Rohanअन्वेषी

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नदी तुम इतनी अधीर क्यों हो ?

नदी तुम इतनी अधीर क्यों हो ?

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नदी तुम इतनी अधीर क्यों हो ?

क्या तुम्हें किसी ने धीरज का पाठ नहीं पढ़ाया !

या तुममें धीरज धरने की इच्छा ही नहीं !

या तुम भी धीरज के पाठ के सीखने समय

मेरी तरह पिछली बेंच पर बैठकर गप्पें हाँक रही थी !         

खैर, मेरा छोड़ो मैंने तो अपने आपको ही बर्बाद किया है।  


लेकिन तुम --

तुम तो खुद का शक्ल जब बिगाड़ती हो तो

हँसती - खेलती आशियां को मातम में तबदील कर देती हो !

तुम जब अपना विकराल रूप जब दिखाती हो

तो जिंदगी तबाह कर देती हो !

मौत का तांडव मचाते हुए तुझे देखकर

दहशत से रूह काँप जाती है हम सबकी !       


तुम बिगाड़ देती हो शहर- गाँव- नगर -कस्बा-

सड़क - गली- मुहल्ले की हुलिया ! 

क्या तुम्हें किसी ने मर्यादा का मर्म नहीं समझाया ?

या तुम्हें मर्यादित रहना नागवार लगी!       

हमारा छोड़ा हम मानव यदि मर्यादित रहते

तो हमारी ये दुर्दिन न आते !

तुम जिस साहिल से मिलती हो या

यूं कहें की जिस साहिल में मिलती हो

उससे तो सीख लेती मर्यादा की सीमा !

सीख लेती उससे धीरज धरने और मर्यादित रहने की कला !

हमारा क्या है हम मानव विनाश के कगार पर खड़े हैं !

शायद सबकुछ खोने के बाद सीखेंगे मर्यादा में रहना और धीरज धरना !

लेकिन तुम मुझपर तुच्छ पर कुपित हो ?

नदी तुम इतनी अधीर क्यों हो ???


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