नैमिषारण्य के हृदय-स्थल से..
नैमिषारण्य के हृदय-स्थल से..
शैव क्यों मैं जग जाता हूँ..
उषा काल के प्रखर प्रकाश में खो जाता हूँ..
शैव क्यों मैं जग जाता हूँ।
या फिर वशीकरण है मानव मन से..
नित भ्रमण जीवन अर्पण से..
वश में खुद के हो जाता हूँ।
दिवस सरोवर दृश भान लिए..
अखण्ड मान को जी जाता हूँ..
दिव्य योनि जो तर जाता हूँ।
तरुण तरुवर अवतरण रण में..
अरण्य वरदानों के भाव स्वर में..
नैमिष आनन्द के प्राकट्य प्रेम में..
चिर हरीतिमा..
आलिंगन बद्ध सा हो जाता हूँ..
ब्रह्म हृदय सुशोभित..
नैमिषारण्य के अखण्ड खोज में
मनु ज्ञान..
हृदय सम्राट जो बन जाता हूँ..
हृदय सम्राट जो बन जाता हूँ।