नारी
नारी
प्रकृति सी कोमल तुम,
मेरु समान दृढ़ता लिए,
नीर सा निर्मल हो तुम,
नारी तुम न हारी हो।।
अन्धकार की दीपक,
निश्च्छलता की मूरत,
सोये मन की आशा हो,
नारी तुम न हारी हो।।
वसुंधरा की शोभा हो,
वात्सल्य मयी ममता,
धिरजता की मूरत धर,
नारी तुम न हारी हो।।
अर्धनारीश्वर में तुम तो,
नर नारी के रूप लिए,
जननी तुम तो जननी,
तुम बिन अधूरी सृष्टि,
नारी तुम न हारी हो।।
