मैं मजदूर
मैं मजदूर
हाथों में फौलाद लिए, रगों में साहस भरता हूँ
अमृत बूँद गिरा धरा में, कर्म किए मैं चलता हूँ
भानु की तपिश किरण, भरी दोपहरी धूप में भी
श्रम के पुजारी है हम, मैं भाग्य बदलने आया हूँ
विपदाओं से घिरे हुए, विपदाओं को तोड़ चले
भूखे प्यासे कुम्हलाए, नित नए आस जगाता हूँ
पत्थर गारे ईट चुन, श्रम की बूंद नित गिरता है
टूटे हुए झोपड़ी मेरा, खुद नए इमारत बनाता हूँ
घर आँगन है सुने सुने, खेत खलिहान छोड़ चले
भूख मिटाने सबका मैं, भूखे पथ नित चलता हूँ
पैरों में भी छाले पड़े, जीने की राह आसान नही
मंजिल की तलाश लिए, शहर-शहर भटकता हूँ
कौन सुनते कौन देखे, यह पहाड़ जैसा दर्द मेरा
मजबूरी में मजदूरी कर, भखे रहता मैं मजदूर।
