नारी तुम हो जटिल प्राणी
नारी तुम हो जटिल प्राणी
नारी तुम हो जटिल प्राणी करती क्यों नहीं तुम अपनी मनमानी
समझे ना कोई तुम्हारी वाणी समेट रही तुम अम्बर का पानी
नारी तुम हो जटिल प्राणी
कहीं दिया बुझाकर कहीं नींद जगाकर उजागर करती तुम नयी क्रांति
दुष्प्रचार पे अंकुश करके दूर करती तुम सबकी भ्रान्ति
नारी तुम हो जटिल प्राणी
दिल पे अपने पत्थर रखके भगत जैसा पुत्र दिया
रानी लक्ष्मी का स्वरुप लेकर गुलामी के बेड़ियों से मुक्त किया
तुमको समझ पाना मुमकिन ही नहीं तुमसे समझ की परिभाषा बनी
नारी तुम हो जटिल प्राणी
कभी माँ की ममता लेकर कभी प्रेमी की प्रेमिका बनकर तुम्हारी जवाबदेही रही
शांति के लिए अत्याचार को सहना तुम्हारी सबसे बड़ी भूल रही
तुम्हारे निष्कपट निष्कलंक मन से सदा विश्व का कल्याण हुआ
पुरुषों से तुम्हे कम समझने से सदैव विश्व की हानि हुई
नारी तुम हो जटिल प्राणी।