नारी की व्यथा
नारी की व्यथा
नारी तेरी व्यथा बयाँ करूँ कैसे शब्द मिलते नहीं
जन्म से लेकर जवानी और बुढ़ापा
तेरी किस्मत खुशी ज्यादा मिलते नहीं
जन्म से पहले हत्या का भय
बच गई जन्म हुआ भेदभाव हुआ
लड़का लड़की मे फर्क हुआ
हुई जवान जमाने बंदिशे हुई शुरू
क्या करना क्या नहींं करना
सब तुझे बताया समझाया गया
भावना मन की दबाना पड़ा
खुलकर वादियो दिल खिलते नहींं
रूप निखार अखर गया
जब नारी अकेली बहसी मिल गया
जो भी पहने वस्त्र दरिंदे मानव जाती
करते कलंकित विक्षिप्त छोड़ते नहींं
गई आबरू संग मासूम जान भी गई
विक्षिप्त वासना वसीभूत मानवता
करते तार तार इंसानियत
लज्जित कलंकित हुई
सृस्टि प्र्दायानि मानव जन्मदायिनी
जन्म ही उसका दुश्वार हुआ
ममतामयी करुणामयी करती करूण पुकार
राह चलती भीड़ हुई गूंगी बहरी
नहींं थी पहले सुरक्षित
ना अब किसी रक्षित हुई
सबकी माँ बहन बेटी की गरिमा नारी
दिया सम्मान सबने उदाहरण मिलते नहींं
जबतक तेरा उचित सम्मान न होगा
शक्ति सम्पन्न समृद्ध हिंदुस्तान न होगा
दुर्गा ल्क्षमी काली की पूजा दिखावा क्यो करते
देवी शक्ति, शक्ति पीठ सब पूजा क्यों करते
घर की नारी मातृ शक्ति जब सेवा नहींं करते
मानव ही नहींं देवो नारी पुजयामान रही
हर इतिहास हर साम्राज्य नारी बिद्दमान रही
कर क्षमा हे देवी नारी शक्ति
रक्षा अगर तेरी कर ना सका
धिक्कार जीवन है अपना
कर न्योछावर जान अपनी
मान सम्मान तुझे जो दिला ना सका
नारी धरती प्रकृति नदी तड़ित सबमे तूही तो है
गरज बरस चमक धमक आदि शक्ति तुही तो है
करेंगे क्या रक्षा तेरी इन्सानो की औकात नहींं
बन जलजला प्रलय तेरी आबरू कोई सौगात नहींं
दुर्ग दानव शुंभ निशुंभ चंडमुंड रक्तबीज
तूने ही तो मारा था
मची दुनिया हाहाकार तूने ही तो उबारा था
अब क्या सोच रही नहींं कोई बचाने वाला
बन जा काली कालिका नहींं कोई आने वाला
नरभक्षी, खूनी वासना पीड़ित भेड़िये पैदा तूने ही किया
पीला पिलाकर स्तन दुध अपना दृस्टी नीच तूने ही दिया
जब आए आफत वतन ज़ोर इनका दिखता नहीं
समाज देश दुश्मनों रक्त इनका खौलता नहींं
क्या सोच रही अब तू नहींं तेरी दया के काबिल है
तेरे ही बेटे तेरी आबरू हया के कातिल है
मुझसे दुर्दशा तेरीअब देखी नहींं जाती
रुक गई कलम भारती लिखी नहींं जाती
हम भी है मुजरिम तेरे हम बच नहींं सकते।