नारी का सम्मान
नारी का सम्मान
शक्ति का दूसरा नाम है नारी,
इसमें कोई संदेह नहीं,
कर न्योछावर खुद को हर बार,
सृष्टि को संभाला है।
सहनशीलता की क्या बात कहूँ,
सीमा नहीं कोई इसकी,
दुष्टता की पराकाष्ठा में भी,
ममता का रूप दिखाया है।
हीमा सिंधु तो बस नाम है समझो,
नारी का स्वरूप है क्या,
संकट आयी जब भी पुरुषों पर,
नारी ने ही उबारा है।
बात हो छोटी या हो बड़ी,
जिसमें भी पुरुष घबराया है,
नारी ने ही ह
ाथ पकड़कर,
सदा बेड़ा पार लगाया है।
कुछ मूर्खों से कहता हूं कि,
भ्रम ये अपना त्याग दो,
नारी को जो अबला समझते,
उनको भी नारी ने जन्मया है।
समय बदला, जमाना भी बदला,
पर नारी का स्वरूप वही,
सारी मुश्किलें खुद पर लेने की
आदत न बदल पाया है।
बदले में क्या मांगा हमसे,
बस थोड़ा सा प्यार और सम्मान,
हमने तो बस मर्दानगी का,
समान ही उसको बनाया है।
नासमझों की दुनिया में,
निःस्वार्थ भाव की मूरत को,
जरा से सम्मान के लिए
दुनिया ने सदा ही तरसाया है।