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Sailesh Srivastava

Abstract

5.0  

Sailesh Srivastava

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लगा फिर एक बार जोर

लगा फिर एक बार जोर

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जिंदगी की ये जो छोर है,

बस सपनों से बंधी डोर है।

मन में जो तेरे ये चोर है,

वो तू ही है या कोई और है।


खुद से ये सवाल कर ले,

तेरा यहां न कोई और है।

सपने तो देखा कर खुशियों के,

वर्ना जीवन में दुख तो घोर है।


गर तू साथी बन गया अपना,

तो जीवन में खुशियां घनघोर हैं।

खुद से पूछ तो सही क्या सपने,

पूरे करने में लगाया तूने पूरा जोर है।


वो क्या जीतेगा दुनिया गैरों से,

जो खुद की ही नजरों में कमजोर है।

हार गया एक बार तो क्या गम है,

जीत से ज्यादा तेरे हारने का ही शोर है।


हिम्मत समेट और उठ जा एक और बार,

और बता किसमें तुझसे भी ज्यादा जोर है।


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