बस शब्दों का अमीर हूँ
बस शब्दों का अमीर हूँ
बस शब्दों का अमीर हूँ
न मीरा की पीर हूँ,
न ही संत कबीर हूँ,
अश्कों से प्यार मुझे,
शब्दों का अमीर हूँ।
न सागर सा धीर हूँ,
न किसी की तहरीर हूँ,
जिंदगी का फलसफा
सुनाता,
जिंदगी का एक राहगीर हूँ।
न मुस्कुराहट की जागीर हूँ,
न ख़ुशियों का फ़क़ीर हूँ,
इंसानियत की खींची हुई,
जीती जागती एक लकीर हूँ।
न किसी धर्म की जंजीर हूँ,
न किसी भगवान का शरीर हूँ,
जिस वजह से बनाया गया हूं,
बस उस वजह की तकदीर हूँ।
न मीरा की पीर हूँ,
न ही संत कबीर हूँ,
अश्कों से प्यार मुझे,
बस शब्दों का अमीर हूँ।