नारी हूँ नदी समान
नारी हूँ नदी समान
मैं एक नारी
हूँ मैं नदी समान
निरन्तर मैं
सदा प्रवाहमान
सदैव गतिमान
सहज रूप
नहर सी मैं मूक
मर्यादा बन्धी
दो तटों में तटिनी
आत्मकथा समान
नदी सम माँ
क्षिप्रा सी विकराल
जीवनदायी
सींचे ये खलिहान
आत्मव्यथा समान
धरा पर ये
दैवीय वरदान
भरे जान ये
बहे जो शमशान
नारी देवी समान
यह ममत्व
वात्सल्य अपनत्व
की है मिसाल
बच्चों के खान पान
समस्या समाधान।
