ना जाने क्या कहते हैं इस नासमझ प्यार को।
ना जाने क्या कहते हैं इस नासमझ प्यार को।
खड़ा हूं दहलीज पे , तेरे इंतजार को।
ना जाने क्या कहते हैं इस नासमझ प्यार को।
आग भी सह लेने की ख्वाहिश रखता हूँ तेरे लिए।
मगर जलने से डरता हूँ बिना तेरे दीदार को।
परवाना हमेशा तैयार है शमा के लिए ,
वो मरकर भी निभा जाए अपने प्यार को।
खड़ा हूं दहलीज पे , तेरे इंतजार को।
ना जाने क्या कहते हैं इस नासमझ प्यार को।
अँधा गूंगा बहरा लँगड़ा बेवकूफ सा है ,
एक दूजे से रूबरू होकर भी मशरूफ सा है।
उन्होंने कहा था चंद पंक्तियां लिखने को इंतजार में।
हम कयामत तक लिखने को तैयार है।
फरेब नहीं है मेरी बातों में झूठे सपने दिखाने का।
फ़ना हो जाऊँ में राख बनकर अगर हौसला न हो मुझ में साथ निभाने का।
खड़ा हूं दहलीज पे, तेरे इंतजार को।
ना जाने क्या कहते हैं इस नासमझ प्यार को।

