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Dr.Pratik Prabhakar

Abstract

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Dr.Pratik Prabhakar

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ना हो हार

ना हो हार

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कभी भी ना लो हाथ हथियार

ना कहो कभी बैल मुझे मार।


कई बार हासिल नहीं होता सब

कभी कुछ छीन भी लेता है रब 

किसी को हासिल जहां में होता

किसी को ना मिलता कभी प्यार

ना कहो कभी बैल मुझे मार।


सब कभी ना कभी कहीं गिरते हैं

कई गिरकर भी तो संभालते हैं 

तू कौन सा द्वेष पाला है मन में 

ना ही है तू कोई खां तीसमार

ना कहो कभी बैल मुझे मार।


वही पाओ जिसके लिए तुम लड़े

रहो उनके साथ जो साथ तेरे खड़े 

कोई भी तुम्हें कुछ कह दे तो क्या

किसी के कहने से ना होती हार

ना कहो कभी बैल मुझे मार।


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