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Anjneet Nijjar

Abstract

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Anjneet Nijjar

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मूढ़ता

मूढ़ता

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दुनिया बैठी तबाही के ढेर पर,

मर रहा इंसान,

छोटा सा इक वायरस,

ले रहा है सबकी जान,

काम धंधे उजड़ गए सब,

सब कुछ हुआ बेजान,

गूँगे-बहरे,अंधे बने रहो तुम

और बोलो जय श्री राम,


आम आदमी हुआ ग़रीबी की रेखा के नीचे,

ग़रीबों की तो निकली जान,

इकॉनमी का हो हुआ सत्यानाश,

दुनिया में छाया अंधकार,

गूँगे-बहरे,अंधे बने रहो तुम

और बोलो जय श्री राम,


स्कूल-कॉलेज सब बंद पड़े,

शिक्षा हो गई चौपट,

न कोई नीति न ही न्याय,

अंधेर नगरी चौपट राजा,

हर किसी का हुआ जीना हराम,


गूँगे-बहरे,अंधे बने रहो तुम

और बोलो जय श्री राम,

बीमारी झेलें, ग़रीबी झेलें,

हर गड़बड़ हर घोटाले झेलें,


और तुम्हारे राज में कितना,

झेलना आम आदमी को पड़ेगा सरकार?

गूँगे-बहरे,अंधे बने रहो तुम

और बोलो जय श्री राम,


मूर्तियाँ बनाओ, मंदिर बनाओ

अस्पताल मत बनवाना,

न सोचना किसी ग़रीब की सुविधा,

बीच सड़क पर मर रहे लोग,


तुम पत्थरों में ढूँढो भगवान,

गूँगे-बहरे,अंधे बने रहो तुम

और बोलो जय श्री राम,

इस सब से होगा क्या,


कोई महिमा मंदिर की मुझे भी समझा दो,

बेरोज़गारी हटेगी?

अर्थव्यवस्था सुधरेगी?

शिक्षा बढ़ेगी?

इलाज मिलेगा?


टेक्नॉलजी संभलेगी?

कुछ तो बता दो,

इतना कुछ सोचने का कहाँ है तुम्हें प्रावधान,

गूँगे-बहरे,अंधे बने रहो तुम

और बोलो जय श्री राम,

बोलो जय श्री राम।


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