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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

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बेज़ुबानशायर 143

Abstract Fantasy Inspirational

मुसाफिर

मुसाफिर

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चार दिनों का जीवन,

 अपना चार दिनों का डेरा रे ।

पल भर रुक के सोच , 

 मुसाफिर क्या तेरा क्या मेरा रे ॥


तिनका जोड़ा महल बनाया,

तूने अपना मान लिया रे ।

चिड़िया जैसा जीवन तेरा,  

सपने को सच मान लिया रे ? ।।


 छोड़ यही सब कल उड़ जाना,

चिड़िया रैन बसेरा रे । 

 चार दिनों का जीवन ,

अपना चार दिनों का डेरा रे ॥ 


 मेरे अपने-अपने कह कर,

बेटा बेटी पाला है । 

हर पल पल तूने मर मर कर, 

जोड़ा सभी पसारा है ।।


आएगा जब काल बुलावा, 

संग न कोई जाना रे, 

चार दिनों का जीवन अपना, 

चार दिनों का डेरा रे ॥


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