मुसाफिर
मुसाफिर
चार दिनों का जीवन,
अपना चार दिनों का डेरा रे ।
पल भर रुक के सोच ,
मुसाफिर क्या तेरा क्या मेरा रे ॥
तिनका जोड़ा महल बनाया,
तूने अपना मान लिया रे ।
चिड़िया जैसा जीवन तेरा,
सपने को सच मान लिया रे ? ।।
छोड़ यही सब कल उड़ जाना,
चिड़िया रैन बसेरा रे ।
चार दिनों का जीवन ,
अपना चार दिनों का डेरा रे ॥
मेरे अपने-अपने कह कर,
बेटा बेटी पाला है ।
हर पल पल तूने मर मर कर,
जोड़ा सभी पसारा है ।।
आएगा जब काल बुलावा,
संग न कोई जाना रे,
चार दिनों का जीवन अपना,
चार दिनों का डेरा रे ॥
