मुसाफिर
मुसाफिर
ऐ मुसाफिर चलता जा, तेरे राह ही तेरे कद्रदान हैं।
हर कदम ये सोच कर बढ़ा, किसी के लिए !
हर कदम ये सोच कर बढ़ा, किसी के लिए !
कि तेरे पदचिन्ह किसी राही पर मेहरबान हैं।
मुसाफिर हो मंजिल की तलाश न कर,
भटके हुए राही जैसा व्यवहार न कर,
एक दिन मुकम्मल होगी तेरी ज़िन्दगी की जीत,
तू राह पर चलता जा, मंजिल की परवाह न कर।
कदम न डिगा, हौसला न हार, बेपरवाह हो जा,
चुनोतियों से न डर, हिम्मत न हार, बेपरवाह हो जा।
सफर ज़िन्दगी का हो या मंजिल की तलाश हो,
चलते रहना तेरा काम है, हिम्मत न हार, बेपरवाह हो जा।
तेरे बढ़े हुए कदम, वापिस नहीं लौटेंगे ऐ मुसाफिर।
इन रास्तों से ही तेरी पहचान है, ऐ मुसाफिर।
इन रास्तों को क्या पता थी, कि तू ऐसा होगा।
हज़ारों लोगों की ख्वाहिश बन बैठा है, ऐ मुसाफिर।
जब तक तू चलेगा कायनात तेरे साथ होगी।
हिम्मत हो, हौसला हो, परवाह तेरे साथ होगी,
ये रास्ते ही करेंगी तेरी परवरिश ताउम्र।
न सोच कि ताउम्र कोई तेरे साथ होगी।
