मुसाफिर तनिक ठहर
मुसाफिर तनिक ठहर
ये कैसी जद्दोजहद है
कैसी ये कशमकश है
बचपन छूटा, जवानी छूटी
बुढ़ापा खड़ा ज़िन्दगी के अंतिम पायदान पर
चंद सांसे जो बाक़ी हैं अभी
बाँधकर सामान खड़ी हैं कतार में
जाने किस पल समा जायेंगी काल की गिरफ्त में
बेवजह क्यूं हैं इतनी बेचैनी
किसलिए इतनी छटपटाहट
तनिक विराम दो इस रफ़्तार को
अपने ही बुने जाल के उलझनों में
क्यों उलझा है रे नादान इंसान तू
जिंदगी की भोर अभी हुई नहीं कि
बुढ़ापे की शाम सताने लगी है
तेरे ही कदमों की आहट भी अब
तुझको सुनाई नहीं देती यहाँ
उम्मीदों की धूप को क्यों भूला है तू
मतवाली बयार का झोंका भी तुझे याद नहीं
जिस भीड़ की कतार में तू खड़ा है
उसका न कोई छोर है न किनारा
चैन की ठंडी छांव तले सुस्ता ले कुछ पल
फिर सोच क्या पाया क्या है खोया है तूने।