मुर्ख की मँशा
मुर्ख की मँशा
मत करो विवाद मूर्ख से
मूर्ख से क्या होड़ लगाओगे
मूर्ख पर न होगा कोई असर
बहस में खुद को उलझाओगे
और तुम ही मुँह की खाओगे
मान लेना उसकी कल्पना
कछुआ उड़ता नील गगन में
कह देना देखा मैंने भी
हाथी को समंदर में तैरते
हाथी को चलवाकर जंगल बीच
तुम भला क्या पाओगे
मूर्ख से मुँह लड़ाकर
अपना समय गंवाओगे
कम बुद्धि भी कहलाओगे
उसकी नहीं आकांक्षा अपेक्षा
किन्तु तुम अपनी काबिलीयत
अपनी बुद्धि सीमित कर जाओगे
नील गगन में उड़े कछुआ या हाथी
मूर्ख संग मत करो समय नष्ट
तुम अपनी मंज़िल अपनी सफलता
अपने रास्ते पर चलकर ही पाओगे
मत करो विवाद मूर्ख से
मूर्ख से क्या होड़ लगाओगे
तुम अपनी मंज़िल अपनी सफलता
अपने रास्ते पर चलकर ही पाओगे।
