मुरझाए अहसास
मुरझाए अहसास
आज मन बहुत उदास है ....
क्यूँ तुमने मुँह मोड़ लिया,
मुझे ज़िंदा मरने छोड़ दिया..!
आज मनझरोखे में तुम संग बीताये
सूनेहरी लम्हों की यादों के ताज़महल को
खंड़हर होता महेसूस कर रहीं हूँ ,
कभी आकर देखो किस तरह बिखरे
पड़े है हमारे साथ बीताये लम्हों के टुकड़े ,
जीतना समेटती हूँ दोगुना बीखरते है..!
भूलने की कोशिश से परे
दबे दबे से कुछ एहसास
झांकते रहेते है ,
बहुत संजोए रखा था उन हसींन लम्हों को
फीर भी कुछ सिलवटें आ गई है जैसे
आ जाती है चहेरे पे झुर्रियां उम्र ढलने पर...!
क्योंकि मैं जानती हूँ तुम्हें मुझसे अब प्यार नहीं ,
इसीलिए तो उन यादों से एक विषैली बू आ रही है
मुरझा गये यादों के महकते फूल,
जीतना यादों को कुरेदती हूँ
परत दर परत फ़िकी नज़र आती है..!
एक पुराने बरगद से एहसास बचे है
जीसमें ना शाखाएँ है ना पत्ते
बस कांटे ही कांटे बचे है,
अब मेरे पास मत आना सिर्फ़ चूभन ही बाकी है..!
ज़िन्दगी मानो सहरा में तब्दील हो गई है
मीलों तक खामोशी और मुरझाये एहसास ज़िदा है..!
मैने कभी सोचा न था की तुम बीन
ऐसी हो जाउंगी, तुमसे मीले हर ज़ख्म के
निशान को फ़िका करने की जुगत लगाती हूँ ,
फिर भी न जाने क्यूँ ज़िन्दगी निखरती ही नहीं ..!
बस एक एहसान कर दो एक बार लौटकर आ जाओ
वो हुनर सिखा दो कोई किसी को भूलता कैसे है?
इतना सिखा दो बस ...!
और हाँ भूले से कहीं आ जाओ तो बस मेरी आँखों में
मत झांकना जो कभी तुम्हें जान से प्यारी थी
आज ये सिर्फ़ दर्द बयां करतीं है,
ये देखकर शायद तुम्हारा दिल पिघलने लगे
पर मैं अब दोबारा ज़िंदा होना नहीं चाहती॥