STORYMIRROR

N.ksahu0007 @writer

Romance

4  

N.ksahu0007 @writer

Romance

मुन्तज़िर कभी तो ख़त्म हो

मुन्तज़िर कभी तो ख़त्म हो

1 min
1.4K

तबस्सुम लिखूं दोनों की बस यही फरमाइश हो

तुम हो रुवपसा हम उसमें पड़ने वाले आइश हो

आज शब चाँद चमक कर, छटा बिखेरने लगा

मानो चाँदनी से मिलकर आने की ख़्वाहिश हो


थी जब इतनी मुहव्वत तो दिल क्यू तोड़ दिया

आसमाँ पर बिखरी पड़ी जैसे लगी नुमाइश हो

मंसूब मिरे सदा है अधूरी रही दिल की कसक

हर्फ़-दर-हर्फ़ उतरते ख़्यालों की आजमाइश हो


चाँद और चाँदनी को मुख़्तलिफ़ क्यू होना पड़ा 

जो हुआ सो हुआ उस मोहब्ब्त की पैमाइश हो

मुन्तज़िर भी कभी तो ख़त्म हो जो दोनों को हैं

बस एक दफ़ा उनसे मिलें थोड़ी तो गुज़ाइश हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance