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Tera Sukhi

Abstract

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Tera Sukhi

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मुमकिन नहीं रहा

मुमकिन नहीं रहा

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मुमकिन नहीं रहा तेरा बिछड़ कर मुझ से मिलना

तूने ज़रा नहीं चरागों से रात भर मेरा बातें करना 


पल भर का सफर था उम्र गाजर दी गई चलने में

जो उम्र गुज़री तेरे संग बिन तेरे अब कैसा चलना


थक हार कर बैठे है जिस दरख़्त की छांव में हम 

इसी छांव के सकूँ में हमने है जाना यंही  मरना 


दूर दुनिया से एक जहां बसा बैठे है जो ख़्वाबों में

उन परिंदो का न रहा हमसे कोई मिलना जुलना 


शहर है अजनबियों का यँहा लोग कमाल करते है 

सबको आता है यँहा निगाहे दरिया में पानी भरना


खुद तो तुम रोशन हुए बैठे हो चारों और से तुम 

हमारे बुझे चिराग चिलाए उनके बिन कैसा जलना 


राहों में धूप तीखी सर पर आसमां नीला निकले

जब हो मौत मेरी न देना ज़मीं हो मेरा ऐसा मरना


न कफ़न कोई करना अदा न कोई मनाना शोक

जब सुख ने हो तेरी यादों से तन्हा ताउम्र गुज़रना।


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