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Tera Sukhi

Abstract

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Tera Sukhi

Abstract

कोई

कोई

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पहचान में नहीं आता कोई अपना 

अपना लगता है जैसे कोई सपना


सोया तो नहीं मैं रात भर जागा हूँ

चाँद को याद है निगाहों का तपना


यादों में बसर गया जो मेरे दिल में

दिल में उतर कर मेरे मन में बसना 


पर्दा ऐ इश्क़ वाज़िब होने लगा जो

पर्दे में रहना तुम चेहरा  न ढकना 


ज़िन्दगी गुज़र जाती है पल भर में

अब गुज़रे जो नाम यार का जपना


मियां शहर अज़ब है यहाँ खुद को

खुद को मियां ज़रा बचाकर रखना 


लोग मिलाते है हाथ यँहा ज़ोर से 

मिलना सब से सब के गले लगना 



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