मुक्तक
मुक्तक
ऐ जिंदगी अब और मेरा इम्तहां न ले
मैं टूट जाऊँ मुझको ऐसी सज़ा न दे
कुछ तो सुकून कोई तो पल चैन का भी दे
चेहरे से अपने शिकन के बादल उतार दे.
ऐ जिंदगी अब और मेरा इम्तहां न ले
मैं टूट जाऊँ मुझको ऐसी सज़ा न दे
कुछ तो सुकून कोई तो पल चैन का भी दे
चेहरे से अपने शिकन के बादल उतार दे.