मुक्तक में ईश सत्ता
मुक्तक में ईश सत्ता
एक तुम हो पिता जग में रखते सबका ध्यान ,
चेतन में साँसों का सफर करे हैं आसान ,
पाप , अनाचार जब धरती पर बढ़ता जाता ,
तब तुम आते दुष्ट दमन राम , नानक समान .1
तेरी कृपा का जगत में बरसे आशीर्वाद ,
सुबुद्धि का मुझ अज्ञानी को दीजिए प्रसाद ,
रच सकूँ तेरी महिमा में नित्य नूतन काव्य ,
हे प्रभु ! प्रीति , से भर मेरे अंतस का प्रसाद .2
हे प्रभु प्रियतम , सच्चिदानंद , ईश त्रिपुरारी ! ,
परोपकार में न्योछावर हो साँसें सारी ,
हो तुम सकल सृष्टि के सृजनहार हे नियंता !
विराजो मन मन्दिर में ' मंजु ' हे मनोहारी ! 3
