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Priyanka Sarkar

Children

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Priyanka Sarkar

Children

मुझे प्राण जी बनना है

मुझे प्राण जी बनना है

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बचपन सीधा सादा सा था, 

कोमिक्स पढ़कर गुज़रता था। 

संवाद बड़े लुभावने से, 

मन में उतर जाते थे। 

हर बार सोचती थी ,

कब मैं प्राण जी से मिलूंगी। 

कितने खुश नसीब हैं वो,

जो इतने अच्छे दोस्त मिले। 

कम्पयूटर से तेज़ दिमाग वाले

चाचा चौधरी, 

साबू पहलवान, 

बालों के पीछे छिपा बिल्लू, 

चुलबुल पांडे जैसी पिंकी।

कितने सारे दोस्त!

इन जैसे दोस्तों के साथ, 

जिदंगी होगी मेरी

एक दम हिट!


मन में ठान ली, 

"मैं कलम उठाऊँगी"!

ग्यारहवीं कक्षा तक

कुछ ना किया मैंने,

सिवाय चित्र अंकन के।

लगा,मेरा सपना गया टूट!


बारहवीं कक्षा में आई,

मेरे स्टार बनने की घड़ी। 

ना पूछने वाले शिक्षक ने ख़बर दी,

वार्षिक पत्रिका प्रकाश होने वाली है। 


बिखरे सपने फिर से जुड़े, 

मन में नई उत्साह जागी।

पहले कुछ दिन तो, 

खुब मशक्कत किया 

अंड बंड लिखकर। 

पन्ने फाड़ राकेट बनाया, 

कलम की निभ तक तोड़ डाली,

पर कुछ ना आया हाथ। 


आखरी तारीख के पूर्व कि रात,

सोच कि बिजली कौंधी,

जला दिमाग का बत्ती। 

कलम बनी तलवार, कागज़ चीर फ़ाड़;

दिया धोबी पछाड़।

सुझा एक शीर्षक-

"मंजिल दूर नहीं "!,

ले आई साथ यादें; 

बचपन की एक कविता कि,

"वीर तुम बढ़े चलो!"!


फिर क्या ...?

हुआ मेरा लेखन समाप्त, 

जगह मिल गई वार्षिक पत्रिका में।

हुआ प्रक्षेपण वार्षिक उत्सव में ,

हमारे विद्यालय की पहली पत्रिका,'उंमेष'!

कवर पृष्ठ सजा, अंकुरित बीज़ के चित्र से। 

घिरने लगे वाह! वाही के बादल!

बरसने लगीं आशीर्वाद रूपी बूंदें, 

लगी सावन की ऐसी झड़ी, 

शिक्षक बुला बुलाकर करने लगे, 

अपनी दुआएं न्योछावर। 

मन में फूटे ढेर सारे लड्डू, 

कर डाली घोषणा,

अब बनी मैं "प्राण जी" जैसी! 


कहानी अभी बाकी है दोस्तों, 

ये तो बस छोटी सी शुरुआत है!



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