राम तोहरे चरणों पड़ुँ
राम तोहरे चरणों पड़ुँ
1 min
58
युग युगांतर से एक ही कथोपकथन,
जबहूँ जबहूँ चली आवे रावण रुपी मनहूँ नाश करी विचार,
तबहूँ तबहूँ आवे राम जैसन विचार परिपूर्ण कोई मनकावास।
ज्यों ज्यों होवे ह्रदय से हनुमान,
त्यों त्यों पावे आत्मारुपी प्रभु श्रीराम!
प्रभु श्रीराम से ऊपर कोई नहीं,
मर्यादा पुरुषोत्तम राम।
सीता मैया ने सँवारे भाग,
मानकर उनको अपना नाथ।
प्रेम के बदले तजहूँ प्रीत नाथ कि,
लांघी गयी रेखा भैया लछिमन कि।
देत रहीं प्रेरणा रावण राज्य में धरा मईया,
तजहूँ नाही प्रेम-भक्ति अपने नाथ प्रति!