यादें
यादें
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यादें मिठाई के डब्बों कि तरह होती हैं
मिठाई का डिब्बा...
जितना ऊपर से दिखने में सुदंर,
उतना ही अंदर से जिदंगी के पलों से भरा,
एक सुहाना सफ़र ।
यादें इन्ही छोटे छोटे
पलों को बुनकर बनती हैं ।
पल कभी रूकता नहीं,
मगर यादें बनकर सिमट जाती हैं
मिठाई के डब्बों में,
हरेक मिठाई एक से बढ़कर एक ।
थोड़ा रुक कर खाओ,
तो और भी ज्यादा स्वादिष्ट लगने लगती है ।
यादें भी वैसी ही हैं...
ठहराव से जिदंगी थम सी जाती है।
पलों को जीते हुए चलो तो,
यह कारवां भी यादें बन जाती है ।
