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Twinckle Adwani

Abstract

3  

Twinckle Adwani

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मुझे डर लगता है

मुझे डर लगता है

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मुझे डर लगता है बहलते रिश्तों से

स्वार्थ के पीछे छिपी दोस्ती से।


 मुझे डर लगता है बदलती घरों की नीवों से 

 अपनों पर हावी पैसे दिखावे  से।


 मुझे डर लगता है खोखली प्रसिद्धि से

 संस्कार व वजूद पर टिकी हल्की लकीरों से। 


मुझे डर लगता है घुरती नजरों से 

धीरे-धीरे मिटती तहजीब से।


 मुझे डर लगता है ऊंची मंजिलों से

 दूसरों को दबाकर चढ़ती सीढ़ियों से। 


मुझे डर लगता है खूबसूरती से

 सिरफिरे आशिक मजनू से।


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