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Surendra kumar singh

Abstract

3  

Surendra kumar singh

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मुहब्बत का एहसास

मुहब्बत का एहसास

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30



तुम्हारी मुहब्बत का एहसास हैं हम

युद्ध में हैं

और युद्ध पर नजर भी है

कहानियों में हैं

और कहानियों की तरह

झर रहे हैं हवा में

रूबरू हैं जीवन से

और जीवन की ढेर सारी

समस्याओं से भी

समय के हफसफ़र भी हैं

और रोक भी रखा है समय को

कितना दिलचस्प है

ये रुका हुआ पल

जैसे अभी अभी आया है यहाँ

यहाँ जहां हम

प्रतीक्षारत थे उसके।


लोग कहते हैं समय भाग रहा है

सहमत भी हैं हम इससे

पर जाता कहाँ है

इसी तरह ठहरा हुआ भी

रह जाता है जाते जाते।

तो तुम्हारी मुहब्बत के एहसास हैं हम

हमसफ़र हैं समय के

रूबरू हैं जीवन से

हालात से

अनसुलझे सवालों से

और इन सबके बीच में

स्थिर से तुम

लगता है सब तुमसे है

और जो जबाब हैं न

अनसुलझे सवालों के

तुम्हारे अंदर से

बाहर निकलने को मचल रहे हैं

लाजवाब, मर्यादित, अनुशासित।


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