मर्यादा
मर्यादा
कंपित होते तार वीणा के
रचते संगीत प्रियकर्ण
मर्यादाहीन कंपन कब
संगीत बनाता है
टूट जाते तार वाद्य के
सुरसरि छिपी कमंडल देव बृह्म के
भुला मर्यादा बढती भू और
चहुंओर हाहाकार मचा
प्रयत्न भगीरथ का व्यर्थ रहता
पाठ न पढाते शिव सुरसरि को
कमंडल से निकल समा गयी शिव केश में
गृहत्यागी, बोध की चाह रखे
सिद्धार्थ न पा सके वह ज्ञान
प्रयत्नों की मर्यादा मान
बुद्ध बने कर खीर पान
भलाई की अति
श्री राम रहे पुकार
सागर अहं से तृप्त
मर्यादा उदारता की भी
लख श्री राम शर
आ पहुंचा कर जोड़ सागर
उत्थान, स्वावलंबन, आजादी
विकास, धर्म, कर्मकांड
नीति, विज्ञान, कर्म
अध्यात्म या जीवन
नर हो या नारी
बाल, युवा, बुजुर्ग
पिता और सुत
सुता या पुत्रवधू
मर्यादा है अपरिहार्य।
