ज़िन्दगी और मैं!
ज़िन्दगी और मैं!
सुनो ज़िन्दगी, क्या चाहती हो मुझसे
ये सवाल पूछ बैठा मैं उससे
ज़िन्दगी बोल पड़ी, तू क्या चाहता है
यही सवाल मेरा भी है तुझसे।
ख़्वाहिशों की लिस्ट तो लंबी थी मेरे पास
चुन लिया मैंने एक, जो था मुझको खास
सवाल तो काफी आ रहे थे मन में
क्या ये ख़्वाहिश आएगी ज़िन्दगी को रास।
मैंने कहा मुझे मौत से मिला दे
थोड़ी सी गुफ़्तगू के बाद ही बुला ले
आख़िर वो तेरी मंज़िल ही तो है ना
तेरे रहते ही मौत का जलवा दिखा दे।
सुनके ये ख़्वाहिश ज़िन्दगी डर सी गयी
आँखें उसकी आँसुओं से भर गयी
मौत से छत्तीस का आँकड़ा है ज़िन्दगी का
सुनके ये बात मेरी ख़्वाहिश मर सी गयी।
ज़िन्दगी बोली, जो तुझे चाहिए
वो सब तो मैं कर रही हूँ तुझे अता
तू ख़ुद नही पाना चाहता
इसमें मेरी क्या है कोई ख़ता।