मोहब्बत तुम्हारी खतरनाक बीमारी
मोहब्बत तुम्हारी खतरनाक बीमारी
दो पल में तुम मशहूर।
हम बदनाम हो गए।।
चर्चे मोहब्बत के हमारी
भरी महफ़िल में,
तमाम हो गए।।
वो ऊंची आवाज़ से तुमने,
मुझे दबा दिया।
हज़ारों की महफ़िल में तुमने,
एक ख़याल न किया।।
संभालती नहीं जो तुमसे,
तो हलक से उतारते क्यों हो।
गुनाह हर रात,
जो करने हो तुम्हें मुझपर,
तो फिर एक रात पहले,
तुम संवारते क्यों हो।।
खातिर तुम्हारे,
सबसे रूठकर जीते है।
घूँट आंसुओं के,
हर रोज़ पीते हैं।।
आते हो जो तुम,
परेशान काम से।
वजह तो न बताते हो।
देते हो
घाव बिस्तर पर,
हर रात एक
जूठी कहानी सुनाते हो।।
कल रात जो हुआ,
मैं नहीं भूल पायी।
सिगरेट की वो राख,
जो तुमने मुझसे बुझाई।।
तुमसे घुटन
कम है क्या,
जो इन कमरो को तुम,
सिगरेटों के
धुएँ से भरते हो।
मेरी छोड़ो तुम,
सिर्फ खुदको नहीं,
इस रिश्ते को तुम,
बिमार करते हो।।
बस अब और नहीं,
मोहब्बत चाहिए तुम्हारी,
मोहब्बत तुम्हारी,
खतरनाक बीमारी।।
इस नज़्म के साथ,
अब इस रिश्ते को,
मैं खत्म करती हूँ।
खुद के लिए जीने,
तुम्हे भूल जाने
उन घाव पर
मरहम लगाने
के थोड़े
जतन करती हूँ।।
हाँ
इस नज़्म के साथ,
हाँ मैं
अब इस रिश्ते को,
खत्म करती हूँ।