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Hansa Shukla

Drama

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Hansa Shukla

Drama

मंज़र

मंज़र

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सुबह-शाम,रात का मंजर देखा,

इस शहर का मैंने हर पहर देखा।


दूसरों के जुर्म पर जो देते है सजा,

अपने गुनाह पर उन्हें बाखुदा देखा।

दूसरों का दिल तोड़कर मुस्कुराते हैं लोग,


दिलवालो की बस्ती का यह नज़ारा देखा।

जो खेत उगलते थे सोने की बालियां,


शहर बनने से उन्हें भी बंजर देखा

धर्म की इस लड़ाई में नहीं आते अब केशव,

दोनों तरफ युद्ध मे जब कौरव की सेना देखा।


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