क्या कहे
क्या कहे
अपनी ही गलतियों की
सजा मिल रही है हमको
किसी और को दोस्तो क्या कहे,
घर मे है बंद, सबक है प्रकृति का
दोहन नहींं विदोहन करते थे
प्रकृति के सुंदर नेमत का,
सब भ्रम टूटा,सब विकास झूठा,
यह सत्य हमें स्वीकारना है,
अब जो बाहर निकले तो,
सम्हल-सम्हल के चलना है।
