कितने स्वतंत्र हुए हम
कितने स्वतंत्र हुए हम
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आजादी के बीते सात दशक,
फिर भी मन में है एक कसक।
करे आकलन स्वतंत्रता का आज
हम सब मिलकर एक साथ।
सजग है लोग अधिकारों के प्रति,
कर्तव्यों की चढ़ रही है बलि।
निरकुंशता का शासन है व्यापत,
हो रहा भर्ष्टाचार का कुठाराघात।
पहले थी गुलामी गोरों की
आज दासता है अपनो की
स्वहित है सबका मूलमंत्र
सोचे ना कोई राष्ट्रहित की
सत्ता दिखा रहा विद्रूप रूप अपना
लोकतंत्र बना लोगो का सपना
हर तरफ है आश्वाशन की लड़ी
सत्ता की वेदी में इंसानियत की बलि चढी।
स्मार्ट सिटी की चमक में
आज गाँव धूमिल हो रहा
खरीद फरोख्त की राजनीति
प्रजातंत्र दम तोड़ रहा।
पहले बंधन था पश्चिमी लोगो का,
आज है बंधन पश्चिमी संस्कृति का,
पब और क्लब जगह ले रहे,
घर की तुलसी और भारती संस्कृति का।
कहाँ गई नारी की आदर्श सीता,
घर की पूजा से दूर हो गई गीता,
हो रहा राम के मर्यादा का हनन
चहूँ ओर विराजे है दशानन।
पहले जंजीरे थी गैरो की
आज अपनो ने जकड़ा है,
स्वतंत्रता को सही मायने में
क्या किसी ने समझा है।।
आजादी के बीते सात दशक
फिर भी मन में है एक कसक।