STORYMIRROR

Hassan Bilal

Abstract

3  

Hassan Bilal

Abstract

मंज़िल दूर की

मंज़िल दूर की

1 min
255

पूरे सफर में चुनोतियाँ भारी हैं

कोई नही हम सफर

लड़ना है खुद मुुझे

कूद गया हूं आग की लपट में

कोई नही बचाने वाला

बचना है खुद यहाँ

निकल कर जाना है वहाँँ

जहाँ मंज़िल है। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract