मन तू क्यूँ ना माने
मन तू क्यूँ ना माने
मन तू क्यू ना माने जो जेहन तेरा अच्छे से जाने
क्यू संभाल बैठा हैं तू दिल की बचकानी उलझनें
दरिया दरिया बहा ले गया यह तू मुझे कहा ले गया
बेरहमी से तोड़ा खयालों का पिंजरा तू घुमके फिर वहाँ ले गया
कुछ तो परवाह कर मेरी अपनी सोच पे यूँ ताला न लगा
फ़ैसला मेरे हिस्से में सुना दिल सा पलटके ना कर दगा
दिल मेरा कहा बेगाना हैं इसके जाल में उलझना मत
अश्कों में बहना मत यह कहानी को हकीकत समझना मत
जिंदगी का सौदा न कर मेरी सुनले तू दिल से मुकर
तुझे भी फँसा लेगा यह बेदर्द जज्बातों के तार छेड़कर
मुझे रिहा करके तू यह बेईमान दिल को पिंजरे में रख दें
बस कभी कभार श्रृंगार सजाऊँ तो चंद धड़कनें मेरे गजरे में रख दें।